पलायन: लॉकडाउन के डर से फिर बिहार लौटने लगे प्रवासी मजदूर
देशभर में कोरोना के बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए लोग अब अपने-अपने गांव लौटने लगे हैं.कोरोना की तीसरी लहर शुरू होते ही बिहार से बाहर काम कर रहे प्रवासी सहम गए हैं. दूसरी लहर के कटु अनुभव और लौटने में हुई परेशानियों को वे भूल नहीं पाये हैं. यही कारण कि, प्रवासी श्रमिक लॉकडाउन के डर से धीरे-धीरे अपने घर लौटने लगे हैं.
कोरोना के बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए कई राज्यों में सख्त प्रतिबंध लगाए गए हैं. कई राज्यों में वीकेंड कर्फ्यू भी लगाया गया है. ऐसे में मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकाता सहित अन्य बड़े शहरों में प्राइवेट जॉब या मजदूरी करने वाले प्रवासियों की परेशानी बढ़ गई है.
लौटने वालों ने सिर्फ एक लाइन में कहा कि कोरोना के बढ़ते आंकड़े अब डराने लगे हैं. हर दिन कोरोना की रफ्तार और तेजी से बढ़ रही है. लॉकडाउन में फंसने से अच्छा है अपने घर में रहेंगे. कोरोना के बढ़ते आंकड़ों और लॉकडाउन की आशंका के मद्देनजर प्रवासी अपने गांव लौटना शुरू कर चुके हैं.
पटना जंक्शन पर लौटे प्रवासियों में ज्यादातर दिल्ली, मुंबई, गुजरात ,पंजाब से लौटे मजदूर हैं.पटना जंक्शन पर जैसे ही लोकमान्य तिलक गुवाहाटी एक्सप्रेस पहुंची हजारों की संख्या में श्रमिक मजदूर लौटते दिखे. सभी मजदूरों के चेहरे पर मायूसी साफ झलक रही थी. लोग काफी डरे सहमे दिख रहे थे. प्रवासी मजदूरों को लॉकडाउन का डर सताने लगा है. यही वजह है कि पटना जंक्शन पर मुंबई से जब ट्रेन पहुंची तो यात्रियों से भरी पड़ी थी. मजदूरों के आने का सिलिसिला बढ़ गया है.
मुंबई से लौटे प्रवासी मजदूर राकेश ने बताया मुम्बई में मिस्त्री का काम करते हैं. लेकिन धीरे धीरे कोरोना के कारण परिस्थितियां खराब हो रही हैं. नाईट कर्फ्यू लगा दिया गया है. राकेश वैशाली के रहने वाले हैं. दूसरी लहर में हुए लॉकडाउन में राकेश को घर वापस आने में काफी परेशानी झेलनी पड़ी थी.इस लिए वह पहले ही गांव लौट आए हैं.
लॉकडाउन में फंसने के बाद स्थिति विकट हो जाती है. अपने घर में रहकर किसी भी परिस्थिति का सामना करना आसान होता है. अपने परिवार के साथ गाजियाबाद में रहकर काम करने वाले सुजीत ने बताया कि अभी घर पहुंचना आवश्यक है. लॉकडाउन के दौरान घर और गांव में रहना आसान है.
बता दें कि, कोरोनावायरस की पहली लहर के दौरान देशभर में लॉकडाउन लगाया गया था. अमीर लोग अपने घरों में रहकर कोरोना से बचाव कर रहे थे. लेकिन बिहार की एक बड़ी आबादी जो रोजी रोटी के लिए बाहर प्रदेश में काम करते हैं फंसे थे. उसी वक्त लाखों मजदूर सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पैदल तय करने को मजबूर हुए थे. उस मंजर को याद कर मजदूर आज भी कांप जाते हैं. इसी का नतीजा है कि, प्रवासी बिहारी तीसरी लहर में घर लौट रहे हैं.