मौनी अमावस्या 24 जनवरी मध्यरात्रि 2 बजकर 17 मिनट से अगले दिन मध्यरात्रि 3 बजकर 11 मिनट तक रहेगी. इस माघी मौनी अमावस्या को धर्मशास्त्रों के अनुसार सूर्याेदय होने के साथ गंगा-स्नान को पवित्र माना गया है. इस दिन मौन धारण करने से आध्यात्मिक विकास होता है. इसी कारण यह अमावस्या मौनी अमावस्या कहलाती है.
- माना जाता है कि मौनी अमावस्या से ही द्वापर युग का शुभारंभ हुआ था. शास्त्रों में इस दिन दान-पुण्य करने के महत्व को बहुत ही अधिक फलदायी बताया है. एक मान्यता के अनुसार इस दिन मनु ऋषि का जन्म भी माना जाता है जिसके कारण इस दिन को मौनी अमावस्या के रूप में मनाया जाता है. शास्त्रों में वर्णित है कि माघ मास में पूजन-अर्चन व नदी स्नान का विशेष महत्व है.
माघी अमावस्या पर सूर्य, चंद्रमा और शनि का संयोग
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं प्रफुल्ल भट्ट के अनुसार शनि आध्यात्म का कारक ग्रह है और सूर्य आत्मा का कारक वहीं चंद्रमा मन का कारक ग्रह माना जाता है. सूर्य और चंद्रमा का शनि की राशि में होने का ये संयोग माघ मास की अमावस्या पर ही बनता है. जब यह दोनों ग्रह मकर राशि में होते हैं. मकर, शनि की राशि है. इसलिए इन ग्रहों के प्रभाव से शनि आत्मिक उन्नति के लिए संयोग बनाता है.
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस के बालकांड में उल्लेख है कि
माघ मकरगति रवि जब होई,
तीरथपतिहि आव सब कोई
देव दनुज किन्नर नर श्रेणी,
सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी.
यानी माघ मास में जब सूर्य मकर राशि में होता है तब तीर्थपति यानि प्रयागराज में देव, ऋषि, किन्नर और अन्य गण तीनों नदीयों के संगम में स्नान करते हैं. प्राचीन समय से ही माघ मास में सभी ऋषि मुनि तीर्थराज प्रयाग में आकर आध्यात्मिक-साधनात्मक प्रक्रियाओं को पूर्ण कर वापस लौटते हैं. यह परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है. महाभारत के एक दृष्टांत में भी इस बात का उल्लेख है कि माघ मास के दिनों में अनेक तीर्थों का समागम होता है.