राजस्थान के कोटा और बीकानेर के बाद अब गुजरात के राजकोट में 100 से ज्यादा बच्चों की मौत का मामला सामने आया है. राजथान के कोटा में अब तक 110 बच्चों की मौत हो चुकी है, वहीं बीकानेर में 162 बच्चों की मौत का मामला सामने आया है. बच्चों की मौत का सिलसिला सिर्फ राजस्थान तक ही सीमित नहीं है. अब गुजरात के राजकोट में 111 बच्चों की मौत का मामला सामने आया है। इस बारे में जब गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी से सवाल पूछा गया तो वह बिना कोई जवाब दिए निकल गए.
बीकानेर सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल एचसी कुमार ने बताया है कि दिसंबर के महीने में पीबीएम अस्पताल के आईसीयू में 162 बच्चों की मौत हो चुकी है. लेकिन अस्पताल में चिकित्सा सेवाओं में कोई लापरवाही नहीं हुई है. एक जीवन को बचाने के लिए पूरे प्रयास किए जाते हैं. वहीं कोटा स्थित जे.के.लोन सरकारी अस्पताल में मरने वाले नवजात बच्चों की संख्या अब बढ़कर 110 हो गई है.
उधर, राजकोट सिविल अस्पताल के डीन मनीष मेहता ने बताया कि राजकोट सिविल अस्पताल में दिसंबर के महीने में 111 बच्चों की मौत हो गई.
जानें, क्यों हुई कोटा के अस्पताल में 110 बच्चों की मौत
कोटा में 100 से ज्यादा बच्चों की मौत के बाद सरकार द्वारा बनाए गए पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बच्चों की मौत की वजह हाइपोथर्मिया (शरीर का तापमान असंतुलित हो जाना) के चलते हुई है. अस्पताल में बुनियादी सुविधाओं की कमी भी इसकी वजह हो सकती है. राजस्थान सरकार द्वारा बच्चों की मौतों के कारण का पता लगाने के लिए गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट में पुष्टि की है कि हाइपोथर्मिया के कारण शिशुओं की मौत हुई है.
हाइपोथर्मिया एक ऐसी आपात स्थिति होती है, जब शरीर का तापमान 95 एफ (35 डिग्री सेल्सियस) से कम हो जाता है. वैसे शरीर का सामान्य तापमान 98.6 एफ (37 डिग्री सेल्सियस) होता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्पताल में बच्चे सर्दी के कारण मरते रहे और यहां पर जीवन रक्षक उपकरण भी पर्याप्त मात्रा में नहीं थे.
नवजात शिशुओं के शरीर का तापमान 36.5 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए, इसलिए उन्हें वार्मरों पर रखा गया, जहां उनका तापमान सामान्य रहता है. हालांकि अस्पताल में काम कर रहे वार्मर की कमी होती गई और बच्चों के शरीर के तापमान में भी गिरावट जारी रही. रिपोर्ट में कहा गया है कि 28 में से 22 नेबुलाइजर दुष्क्रियाशील (डिसफंक्शनल) मिले. वहीं 111 में से 81 जलसेक (इनफ्यूजन) पंप काम नहीं कर रहे थे और पैरा मॉनिटर और पल्स ऑक्सीमेटर्स के हालात भी खस्ता थे.
जिस चीज ने मामले को बदतर बना दिया, वह थी अस्पताल में ऑक्सीजन पाइपलाइन की अनुपस्थिति, जिससे सिलेंडर की मदद से बच्चों को ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाती है. रिपोर्ट में आईसीयू के हालात भी खराब बताए गए हैं. पूर्व स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने कहा, “अशोक गहलोत ने राज्य में ‘निरोगी राजस्थान’ अभियान की शुरुआत की, वहीं दिसंबर में बच्चों की मृत्यु जारी रही.”
अस्पताल के अधिकारियों ने कहा कि जे.के. लोन अस्पताल के अधिकांश बालरोग विशेषज्ञों को कोटा के न्यू मेडिकल कॉलेज में तैनात किया गया है. सूत्रों के अनुसार, बच्चों के लिए खरीदे गए 40 हीटरों का कोई रिकॉर्ड नहीं है. अस्पताल के एक अधिकारी ने कहा कि अस्पताल के पास छह करोड़ रुपये का बजट होने के बावजूद कोई खरीद नहीं की गई.